श्री काली चालीसा
काली चालीसा के बोल हिंदी और अंग्रेजी में। श्री काली चालीसा को पीडीएफ और जेपीजी में डाउनलोड करें।
काली चालीसा (अंग्रेजी)
!! जय काली कालीमलहारन, महिमा अगम अपार,
महिष मर्दिनी कालिका, देहु आभए अपार,
अरि मद मान मिटावन हरि मुण्डमाल गैल सोहत प्यारी,
अष्टभुजी सुखदायक माता दुष्टदलन जग में विख्याता !!
!! भल विशाल मुकुट छवि चाजेकर में शीश शत्रु का साजे,
दूजे हाथ लिये मधु प्याला हाथ तेसारे सोहत भला,
चौथे खप्पर खड़ग कर पंचे, छठे त्रिशूल शत्रु बल जंचे,
सप्तम कर दमकत असी प्यारी शोभा अद्भुत मात तुम्हारी !!
!! अष्टम कर भगतं वर दाता जग मनह्रं रूप ये माता,
भगतन में अनुरक्त भवानी निशदिन कटे ऋषि-मुनि ज्ञानी,
महाशक्ति अति प्रबल पुनीता तू ही काली तू ही सीता,
पतित तारिणी हे जग पालक कल्याणी पापी कुल घातक !!
!! शेष सुरेश ना पावत पारा गौरी रूप धेओ एक बारा,
तुम समान दाता नहीं दूजा विधिवत करे भगतजन पूजा,
रूप भयंकर जब तुम धरा दुष्टदलां कीन्हेउ सहारा,
नाम अनेकन मात तुम्हारे भगतजानो के संकट तारे !!
!! कलि के कष्ट कलेशं हरनि भव भय मोचन मंगल करनी,
महिमा अगम वेद यश गवे नारद शरद पार न पावे,
भू पर भर बढ्यौ जब भरितब तब तुम प्रकटी महतारी,
आदि अनादि अभे वरदाता विश्वविदित भाव संकट त्राता !!
!! कुसमे नाम तुम्हारो लिन्हो उसको सदा अबे वर दीन्हा,
ध्यान धरे श्रुति शेष सुरेशा काल रूप लखि तुमारो भेषा,
कलुआ भैरो संग तुम्हारे अरि हित रूप भयंकर धरे,
सेवक लंगूर रहत आगारी चौइसठ जोगन आज्ञाकारी !!
!! त्रेता में रघुवर हित आई दसकंधर की सैं नसाई,
खेला रान का खेल निराला भरा मनस-मज्जा से प्याला,
रौद्र रूप लखि दानव भागे कियो गवन भवन निज त्यागे,
तब एसौ तामस चढ़ आयो स्वजन विजन को भेद भुलायो !!
!! ये बालक लखि शंकर आये राह रोक चरणों में धये,
तब मुख जिब निकर जो आई यहीं रूप प्रचलित है मयि,
बध्यो महिषासुर मद भारी पीडित किये सकल नर-नारी,
करुण पुकार सुन्नी भगतन कीपर मिटावन हित जन जन की !!
!! तब पार्किंग जन सेन स्मेतनम पडा मां महेश विजेता,
शुभ निशुभ ह्ने छिन महितुम सम्म जुग दूसर कोउ नाही,
मन्न मथानहारी खल दाल केसदा सहेक भगत विकल के,
दीन वेन्ह केरे नित सेवा पावे मनवंचित फल मेवा !!
!! संकट में जो सिमरन करी उनके खासत मातु तुम हारी,
प्रेम सेहत जो करत लाभ बंधन सो मुक्ति पावे,
काली चालीसा जो पड़े वारग्लोक बिनो बंधन चढ़ी,
देया विशिष्ट हेरि जगदम्बकेहि कारण मां कियो विलम्भा !!
करहु मातु भगतं रख्वालि जयति जयति काली कंकाली,
सेवक दीन अनाथ अनारी भगवतीभाव युति शरण तुम्हारी ll
ll दोहा ll
!! प्रेम साहित जो करे काली चालीसा पाठ,
तिनकी पोरन कामना होए सकल जग थाथ !!
काली चालीसा (हिन्दी)
!! जयकाली कालीमलहरण, महिमा अगम अपार,
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार,
अरि मॅनॅकॅवन हरिमुण्डमाल गल सोहत सुन्दर,
अष्टभुजी सुखदाई मातादुष्टदलन जग में विख्याता !!
!! भाल विशाल मुकुट छवि छज्जाकर में शीश दुश्मन का साज़,
दूजे हाथ के लिए मधु प्यालाहाथ तीसरा सोहत भला,
चतुर्थ खप्पर खड्ग कर पांचेछठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे,
सप्तम कर्दमकत असि प्यारीशोभा अद्भुत मात तेरे !!
!! अष्टम कर भक्तन वर दाताजग मनहरण रूप ये माता,
भक्ति में अनुरक्त भवानीनिशदिन रतें ॠषी-मुनि ज्ञानी,
महाशक्ति अति प्रबल पुनीतातू ही काली तू ही सीता,
पतित तारिणी हे जग पालककल्याणी पापी कुल गलक !!
!! शेष सुरेश न पावत परागौरी रूप धर्यो इक बारा,
तुम समान दाता नहीं दूजाविधिवत करो भक्तजन पूजा,
रूप भयंकर जब तुम धर्मदुष्टदलन कीन्हेहु संहारा,
नाम अनेकन माता तेरे भक्तों के संकट तारे !!
!! कलि के कष्ट कलेशन हरनीभव भय मोचन मंगल करनी,
महिमा अगम वेद यश गावैंनारद शरद पर न पावैं,
भू पर भार बढ्यौ जब भारीतब तब तुम प्रकटीं महतारी,
आदि अनादि अभय वरदाताविश्वविदित भव संकट त्राता !!
!! कुसमय नाम तुम्हारौ लीनहौसको सदा अभय वर दीन्हा,
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशाकाल रूप लखि तुमरो भेषा,
कलुआ भैंरों संगतुमारी हित रूप भयानक धरे,
सेवक लांगुर रहत अगरीचौसठ जोगन आज्ञाकारी !!
!! त्रेता में रघुवर हित आइदशकंधर की सैन नसाई,
खेला रण का खेल निरालाभरा मांस-मज्जा से प्याला,
रौद्र रूप लखि दानव भागेकिउ गवन भवन निज त्यागे,
तब ऐसौ तामस चढ़े आयोसवजन विजन को भेद भुलायो !!
!! ये बालक लाखी शंकर आये रोक चरणों में धाए,
तब मुख जीभ निकर जो इयही रूप व्याप्त है माई,
बाध्यो महिषासुर मद भारीपीड़ित सकल नर-नारी,
करूण पुकार सुनो भक्तन कीपीर मिटावन हित जन-जन की !!
!! तब प्रगति निज सैन अंगानाम पड़ा मां महिष विजेता,
शुभ निशुम्भ हने छन माहींतुम सम जग दूसर कोउ नाहीं,
मन मथानहारी खल दल केसदा सहायक भक्त विकल के,
दीन विहीन करैं नित सेवापावैं मनवांछित फल मेवा !!
!! संकट में जो सुमिरन करहीं उसी कष्ट मातु तुम हरहीं,
प्रेम सहित जो कीरति गावैंभव बन्धन सों मुक्ती पावैं,
काली चालीसा जो पढ़हींस्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं,
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बाकेहि कारण मां कियौ विलम्बे !!
!! करहु मातु भक्तन रखवालीजयति जयति काली कंकाली,
सेवक दीन अनाथ अनारीभक्तिभाव युति शरण तू !!
॥ दोहा ॥
!! प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ,
तिनकी पूर्ण कामना, होय सकल जग ठाढ !!