श्री गंगा चालीसा हिंदी और अंग्रेजी में

The Ganga Chalisa

Shri Ganga Chalisa In Hindi and English

श्री गंगा चालीसा

श्री गंगा चालीसा प्रार्थना हिंदी और अंग्रेजी पाठ में। गंगा भगवान विष्णु की पत्नी हैं। श्री गंगा चालीसा को पीडीएफ और जेपीजी में डाउनलोड करें।

गंगा चालीसा (अंग्रेजी)

दोहा
!! जय जय जय जग पावनी, जयति देवसारी गंग,
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग,
जय जय जननी हरणा अघ खानी, आनंद करनी गंगा महारानी,
जय भागीरथी सुरसुरी माता, कलिमल मूल दाल्हनी विखाता !!

!! जय जय जहनु सुता अघ हनानी, भीष्म की माता जग जननी,
धवल कमल दल मम तनु सजे, लखि शत शारद चन्द्र छवि लजै,
वहा मकर विमल शुचि सोहे, अमिआ कलश कर लखि मन मोहे,
जदिता रत्न कंचन आभूषण, हिये मणि हर, हरणीतां दूषण !!

!! जग पावनी त्रै तप नस्वानी, तरल तरंग तुंग मन भावनी,
जो गणपति अति पूजे परधान, दुहुँ ते प्रथम गंगा अस्नाना,
ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी, शी प्रभु पाद पंकज सुख सेवी,
साथी शेष सागर सुत तारियो, गंगा सागर तीर्थ धारियो !!

!! अगम तरंग उठो मन भवन, लक्खी तीर्थ हरिद्वार सुहावन,
तीर्थ राज प्रयाग आशावेता, धरेओ मातु पुनि काशी करवत,
धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सिद्धि, तरनि अमिता पितु पद पिरही,
भागीरथी तप कियो ऊपरा, दियो ब्रह्म तव सुरसरि धरा !!

!! जब जग जननी चलेओ हाथरै, शम्भु जटा महो रहेओ समाइ,
वर्षा पर्यन्त गंगा महारानी, ​​रही शम्भू के जाता भुलानी,
पुनि भागीरथी शम्भुहि धीओ, तब इक बंध जटा से पायो,
ताते मातु भे त्रै धरा, मृतु लोक, नभ, अरु पात्रा !!

!! गई पाताल प्रभावती, नामा, मंदाकिनी गई गगन ललामा,
मृतेउ लोक जाह्नवी सुहावनि, कामीमल हरनि अगम जुग पावनि,
धनी मैया तब महिमा भारी, धर्म धुरी कै कौश कुठारी,
मातु प्रभावती धनि मंदाकिनी, धनि काली सुर सरित सकल भैणासिनी !!

!! पान करत निर्मल गंगा जल, पावत मन इच्छित अनंत फल,
पूर्व जन्म पुण्ये जब जगत, तभी ध्यान गंगा महा लगता,
जय पगु सुरसरी हेतु उठावहि, तै जगि अश्वमेघ फल पावे,
महा पतित जिन कहु न टारे, तिन टारे इक नाम तिहारे !!

!! शत योजन हु से जो ध्यावहि, निश्चय विष्णु लोक पद पावी,
नाम भजत अंगित अघ नशे, विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे,
जिमि धन मूल धर्म अरु दाना, धर्म मूल गंगा जल पाना,
तब गुण गुण क्रत दुःख भजत, गृह गृह सम्पति सुमति विराजत !!

!! गंगहिं नीम सहित नित्त ध्यावत, दुरज नहु सज्जन पद पावत,
उद्दिहिं विद्या बल पावे, रोगी रोग मुक्त ह्वे जावे,
गंगा गंगा जो नर कहे, भूखा नंगा कबहुँ न रही,
निकसत ही मुख गंगा माहि, श्रवण दबि यम चलहि पराई !!

!! मह अघिन अधमन कहाँ तारे, भये नरक के बन्द किवारे,
जो नर जपी गंगा शत नाम, सकल सिद्धि पुराण ह्वे काम,
सब सुख भोग परं पद पावहि, अवगमन रहित ह्वे जावहि,
धनी मैया सुरसरि ऐसी दैनी, धनी धनी तीरथ राज त्रिवेणी !!

!! काकड़ा ग्राम ऋषि दुर्वासा, सुन्दरदास गंगा कर दासा,
जो ये पढ़े गंगा चालीसा, मिली भगति अविरल वागीसा !!
दोहा
!! नित नये सुख सम्पति ले, धरे गंगा का ध्यान,
अंत समाई सुर पुर बसल, सादर बैठी विमान !!


गंगा चालीसा (हिन्दी)

दोहा
!! जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग,
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग,
जय जय जननी हराणा अघखानी। आनंद करना गंगा महात्म्य,
जय भागीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालीनी विख्याता !!

!! जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जाग जननी,
धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चन्द्र छवि लाजाई,
वहाँ मकर विमल शुचि सोहें। अमिया कलश कर लखी मन मोहें,
जड़िता रत्ना कंचन आभूषण। हे मणि हर, हरणितम् दूषण !!

!! जग पावनी त्रय तप नासवनी। तरल तरंग तुंग मन भवानी,
जो गणपति अति पूज्य प्रधान। एहूँ ते प्रथम गंगा अस्नाना,
ब्रम्हा कमंडल वासिनी देवी। श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी,
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो। गंगा सागर तीरथ धरयो !!

!! अगम तरंग हित्यो मन भवन। लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन,
तीरथ राज प्रयाग अक्षयवेता। धरयो मातु पुनि काशी करवत,
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सदा। तरणी अमिता पितु पड़ पिरही,
भागीरथी ताप कियो उपारा। दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा !!

!! जब जग जननी चल्यो हाहराइ। शम्भु जाता महान रह्यो समाई,
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी। रहती शम्भू के जाती भुलानी,
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो। तब इक बूंद जाता से,
पयोताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा !!

!! गाला पाताल प्रभावती नामा। मन्दाकिनी गगन ललामा द्वारा,
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी। कलिमाल हरणी अगम जग पावनी,
धनि मइया तब महिमा भारी। धर्मं ध्र काली कलुष कुठारी,
मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी। धनि सुर सरित सकल भयनासिनी !!

!! पान करत निर्मल गंगा जल। पावत मन चाहे अनंत फल,
पूर्व जन्म पुण्य जब जागत। तबहिं ध्यान गंगा महँ लागत,
जय पगु सुरसरी हेतु उठवही। ताई जगि अश्वमेघ फल पावहि,
महा पतित जिन कहू न तारे। तीन तारे इक नाम तिहरे !!

!! शत योजन हूँ से जो ध्यावहीं। निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं,
नाम भजत अगणित अघ नाशै। विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे,
जिमि धन मूल धर्मं अरु दाना। धर्मं मूल गंगाजल पाना,
तब गुण गुणन करत दुःख भजत। गृह गृह सम्पति सुमति विराजत !!

!! गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। दुर्जनहूँ सज्जन पद पावत,
उद्दिहिं विद्या बल पावै। रोगी रोग मुक्त हवे जावाई,
गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखा नंगा कबहुह न रहहि,
निकसत ही मुख गंगा माई। श्रवण दाबी यम चलहिं पराई !!

!! म्हँ अघिन अधमन कहं तारे। भए नरका के बंद किवारेन,
जो नर जपी गंग शत नाम सकल सिद्धि पूर्ण ह्वै काम,
सब सुख भोग परम पद पावहीं। मुक्त रहित ह्वै जावहीं,
धनि मैया सुरसरि सुख दानी। धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी !!

!! ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। सुन्दरदास गंगा कर दासा,
जो यह पढ़ता है गंगा चालीसा। मिले भक्ति अविरल वागीसा !!
दोहा
!! नित नये सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान,
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर् सीट विमान !!

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