राहु और केतु के लिए सर्वोत्तम रत्न कौन से हैं?
राहु के लिए रत्न?
गोमेद नामक गोमेद रत्न राहु ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। राहु से संबंधित सभी दोष और दशा इस ग्रह के अंतर्गत आने वाले दोषों को दूर कर देते हैं।
हेसोनाइट (गोमेद)
यह कच्चा पत्थर है और इस पत्थर की रासायनिक संरचना ज़िरकोनियम या सिलिकेट जैसी है। यह साइनाइट के गोले में पाया जाता है और इसका रंग रक्त जैसा लाल होता है। भारत में यह कश्मीर, कुल्लू, शिमला, बिहार, उड़ीसा और मैसूर में पाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह श्रीलंका, बर्मा और थाईलैंड में पाया जाता है। इसके अंदर मकड़ी की संरचना या कट, धुएँ या धब्बे के निशान होते हैं। यह पारदर्शी है और इसकी कीमत इसकी पारदर्शिता पर निर्भर करती है। श्रीलंका और उड़ीसा की खदानों से प्राप्त हेसोनाइट को सबसे शुद्ध माना जाता है।
महत्व और लाभ
इस रत्न का स्वामी ग्रह राहु है। किसी ग्रह में राहु की उपस्थिति के कारण व्यक्ति बेचैन रहता है, निर्णय लेने में समस्या होती है, हर योजना में असफलता मिलती है। इस रत्न को पहनने से व्यक्ति का शत्रु कमजोर होता है, कोर्ट-कचहरी के मामलों में भी यह रत्न लाभदायक होता है। पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं, बच्चों की पढ़ाई में आने वाली समस्याओं में यह रत्न अच्छे परिणाम देता है। इसका चूर्ण श्वास, कुष्ठ रोग, तिल्ली के बढ़ने में सहायक होता है, पैरों में दर्द और चलने में कठिनाई के अन्य कारणों को दूर करता है। यह न्यूरोसिस को ठीक करता है और पुरुषत्व को बढ़ाता है।
रत्न कैसे पहनें?
गोमेद रत्न कम से कम 5 रत्ती का होना चाहिए, लेकिन 5 रत्ती से अधिक होने पर भी शीघ्र परिणाम मिलते हैं। गोमेद रत्न को चांदी में पहनने की सलाह दी जाती है। इसे शनिवार के दिन मध्यमा अंगुली में ताजे दूध और पवित्र जल से धोकर मंत्रों का जाप करते हुए पहनना चाहिए।
अंग्रेजी में मंत्र
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः राहुवाय नमः
मंत्र हिंदी में
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
नोट: जिस दिन गोमेद रत्न पहना जाए, वह 3 वर्ष तक अपना प्रभाव दिखाता है।
केतु के लिए रत्न?
लहसुनिया के नाम से जाना जाने वाला बिल्ली की आँख केतु ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। केतु से संबंधित सभी दोष और दशा इस ग्रह के अंतर्गत आने वाले दोषों को कम कर देते हैं।
बिल्ली की आँख (लहसान्या)
यह कच्चा पत्थर है और इस पत्थर की रासायनिक संरचना बेरिलियम और एलुमिनेट है। इसका पीला रंग फेरस ऑक्साइड के कारण है। यह श्रीलंका, बर्मा, चीन और ब्राजील में पाया जाता है। भारत में यह मुख्य रूप से उड़ीसा में पाया जाता है। यह पत्थर हल्के पीले रंग का होता है और इसकी सतह पर सफ़ेद रंग का धब्बा होता है जैसे बिल्ली की आँख का नाम इसी के नाम पर रखा गया है।
महत्व और लाभ
यह केतु ग्रह द्वारा शासित है। यह राहु, केतु और शनि की उपस्थिति में भी परिणाम दिखाता है। यह लोगों की शक्ति, सच्चाई और कड़ी मेहनत को बढ़ाने में मदद करता है। यह संतान प्राप्ति की इच्छा को पूरा करता है। यह मानसिक तनाव, शारीरिक समस्याओं, आलस्य और भूत-प्रेत के डर को दूर करता है। यह रात में बुरे सपनों से भी बचाता है और इसे चेन में पेंडेंट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है, रक्तस्राव को रोकता है, दीर्घायु देता है और व्यक्ति को बुद्धिमान बनाता है।
रत्न कैसे पहनें?
लहसुनिया कम से कम 5 रत्ती का होना चाहिए, लेकिन 5 रत्ती से अधिक लहसुनिया भी शीघ्र फल देता है। लहसुनिया को चांदी में पहनने की सलाह दी जाती है। लहसुनिया को बुधवार के दिन ताजे दूध और पवित्र जल से धोकर मंत्रों का जाप करते हुए तीसरी उंगली में पहनना चाहिए।
अंग्रेजी में मंत्र
ॐ स्रां श्रीं स्रों सः केतुवाय नमः
मंत्र हिंदी में
ऊंस्वत्रं स्वत्रिंस्वत्रौं स: केतवे नम:
नोट: लहसुनिया रत्न जिस दिन धारण किया जाता है, उसका प्रभाव तीन वर्ष तक रहता है।